माँ ही मनुष्य की प्रथम गुरु कहलाती है - आचार्य सुदेवानंद - Jambhani Samachar

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Tuesday 27 September 2016

माँ ही मनुष्य की प्रथम गुरु कहलाती है - आचार्य सुदेवानंद

संवाददाता
श्रवण बिश्नोई

फूलण गांव में चल रही श्रीमद जम्भेवाणी भागीरथी कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन आचार्य सुदेवानंद महाराज ने कथा का वाचन करते हुए श्रोताओं से कहा कि माता मनुष्य की प्रथम गुरु कहलाती है। वह बच्चे को सर्वप्रथम अक्षरज्ञान देती है। उसका अपनी सन्तान से रिश्ता अन्य सभी रिश्तों से नौ माह अधिक होता है। इस धरती पर लाने के कारण उसे भगवान का रूप कहा जाता है। बच्चे का लालन-पालन वह बहुत ही ममता और प्यार से करती है। स्वयं गीले में सो जाती है परन्तु बच्चे को सदा सूखे में सुलाती है। अपना सारा सुख और आराम बच्चे के लिए कुर्बान कर देती है। उसकी ममता के समक्ष दुनिया के सभी सुख फीके पड़ जाते हैं। आचार्य ने कहा कि माँ ईश्वर का रूप होती है, वही सबसे बड़ा देवता है। माता के प्रति अपने सारे दायित्वों का निर्वहण प्रसन्नता पूर्वक करने चाहिए। माता को जीवन में कष्ट न हो, उसके सुख-साधन का ध्यान रखना ही मनुष्य की सबसे बड़ी साधना है। मन्दिर मे जाकर पत्थर की मूर्तियों के सामने माथा रगड़ने के स्थान पर यदि घर में बैठी जीवित माँ रूपी भगवान की पूजा की जाए तो अधिक उपयुक्त होगा। सारे रिश्ते-नाते और बन्धु-बान्धव मनुष्य को मझधार में छोड़ सकते हैं परन्तु ममता की छाया से वह कभी वंचित नहीं हो सकता। वहाँ आकर जो स्वर्गिक आनन्द उसे मिलता है वह अन्यत्र नहीं मिल सकता।
उहोंने ने कहा कि माँ शीतल छाया की भाँति होती है। उसके अलावा और कहीं से इन्सान को ठण्डी छाया नहीं मिल सकती।
इसका सबसे बड़ा कारण है कि पुत्र कुपुत्र बन सकता है पर माता कुमाता नहीं हो सकती। आवश्यकता होने पर वह अपने बच्चों की बुराइयों पर भी पर्दा डाल देती है। दुनिया की नजरों में उसे हमेशा ऊँचा उठा हुआ देखना चाहती है। सबसे बढ़कर वह सन्तान को गरम हवा भी नहीं लगने देना चाहती। उसका वश चले तो अपने बच्चों के सारे दुख स्वयं झेल ले। इन्सान को दुनिया से चाहे दुत्कार मिले लेकिन माता के लिए वह सबसे श्रेष्ठ होता है। वह कभी अपनी सन्तान को अपमानित होते हुए नहीं देख सकती। सन्तान को यदि कष्ट होता है तो उसका कलेजा छलनी हो जाता है। माता के अतिरिक्त ऐसा निस्वार्थ प्रेम किसी और रिश्ते में नहीं मिल सकता। उसकी सेवा करने से चारों धामों की यात्रा के पुण्य का फल मिलता है तथा मनुष्य का इहलोक व परलोक दोनों सुधर जाते हैं। इस अवसर पर श्रीराम कावा, देवाराम खावा, मालाराम गोदारा, जगमालराम खीचड़ सहित सैकड़ो ग्रामीण मौजूद थे।

फोटू - फूलण में कथा का उद्धबोधन देते आचार्य सुदेवानंद महाराज और महाआरती में भाग लेते ग्रामीण

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