लेखिका:- शर्मिला गोदारा
पंजाब यूनिवर्सिटी (P.hd Student)
चंडीगढ़
जंगली लड़की
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कई अंकुर फूटे
फूल बिखरे
हाथ से सींचे
नन्हें पौधे
कंधों से ऊपर निकल आए
वे हँसते हैं-
"तुम उतनी ही हो !"
सच..
तुम उतनी ही हो !
तावड़े से तपी
पिद्दी लड़की
जो खुरदरे हाथों का स्नेह पाने के लिए
अपना सिर
बार-बार आगे कर देती है
उंगलियों की गर्माहट
फिर वहीं ले जाती है
जहाँ...
आँखों में आसमान
पालने वाली
जंगली लड़की रहती है ।
Nice poem; but it is like sonnet ,
ReplyDeletePoem should go on, it should be like epic.
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